~वादा~
राजीव चौक के एक तरफ अमीरो के लिये CP है तो दूसरी तरफ पलिका बाज़ार | हम तो पलिका बाज़ार मटेरीएल है | बस रोज़ की तरह , ग्रॉउन्ड फलोर् मे , सीडियों के पास वाली दुकान के बाहर थे | बेमन से खड़े थे , काम मे मन नहीं देखा जाता , की हमे वो दिखी और ऐसे दिखी की पहली बार किसी को देखकर हमारे होश उड़ गये |
बड़ी मुश्किल से उसका ध्यान अपनी ओर खींचा ,मत पूछीये कैसे । बस आँखें मिली और मन भी। फिर क्या, हमें कार में अपने घर ले गई । बहुत बड़ा घर था, पर हमारी नज़रे बस उस पर टिकी थी, दिल के हाथों मजबूर थे । कितने प्यार से थामे रखा था उसने । फिर उसकी मम्मी से उसने मिलवाया, उनकी फेक वाली स्माईल देख कर हर वो बॉलीवुड मूवी याद आ गई जिसमें फाईनैनशियल डिफरेंसेस की वजह से हीरो-हिरोईन साथ नहीं हो पाते ।
खैर, मैं अौर मीरा रोज़ मिलते थे। वीकेंड्स पर तो , क्या कहे , बस मंडे के अलावा हमें कोई अलग नहीं कर सकता था । फिर हमारे साथ होने के छः महिने बाद उसे ईन्टर्नशिप के लिए मु़ंबई जाना पड़ा, पहली बार हम एक महिने के लिए अलग हो रहे थे ।
अभी उसे गए हुए एक हफ्ता हुआ था, हम उसके रूम में उसकी और हमारी साथ वाली फोटोज़ देख कर सोंच रहे थे की मीरा हमारे साथ कितना खुश रहती हैं और हम उसके साथ।
तभी कमरे का दरवजा़ खुला, मम्मी अंदर आई और हमें खींचते हुए डाईनींग रूम में ले आईं । और इस से पहले कि हम कुछ समझ पाते, वो किचन से कैंची ले आईं और फिर वो हुआ जिस से हम पहले दिन से डर रहे थे ।
” मीरा, हमें माफ़ कर देना। हमनें तुम्हारा साथ कभी न छोड़ने का वादा किया था, जो हम निभा न सके। हम फिर मिलेंगे , एक ऐसी दुनिया में जहां फाईनैनशियल और स्टैटस डिफरेंसेस न होंगे ,होगा तो बस प्यार, तुम और मैं। ”
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तुम्हारा पैजामा और
(अब) तुम्हारी मम्मी का पोंछा